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Shabe Qadr Ki Dua / शबे क़द्र की ख़ास दुआ

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Shabe Qadr Ki Dua / शबे क़द्र की ख़ास दुआ

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Shabe Qadr Ki Dua Arabic English Hindi Main

शबे क़द्र की ख़ास दुआ

अल्लाह ने अता की है हमें रात शबे क़द्र
तुम उसकी करो क़द्र वो तुम्हारी करेगा क़द्र

हज़रत आयशा सिद्दीक़ा रज़ियल लाहु तआला अन्हा ने हुज़ूर (सल्लल लाहु अलैहि वसल्लम) से एक बार सवाल किया “ या रसूलल लाह अगर मुझे किसी रात के बारे में ये मालूम हो जाये कि ये लैलतुल क़द्र की रात है तो मैं उस में क्या करूँ” आप (सल्लल लाहु अलैहि वसल्लम) ने फ़रमाया कि तुम उस वक़्त में ये दुआ पढ़ो

Dua Lailatul Qadr Ya Shabe Qadr | शबे क़द्र की ख़ास दुआ

اللْهُمَّ إِنَّكَ عَفُوٌّ تُحِبُّ الْعَفْوَ فَاعْفُعَنِّي

Dua In English : Allah humma innaka a'fuvun tuhibbul afwa fa'fu anni

Dua In Hindi : अल्लाहुम्मा इन्नका अफुव्वुन तुहिब्बुल अफ्वा फ़अ’फु अन्नी

Translation : ए अल्लाह ! बेशक तू माफ़ करने वाला है, माफ़ करने को पसंद करता है तो मुझे भी माफ़ फरमा दे (तिरमिज़ी)

हमारे नबी सल्लल लाहु अलैहि वसल्लम ने इस क़दर जामे दुआ फ़रमायी है कि इस की क़बूलियत के बाद तमाम मसाइल ख़ुद हल हो जाते हैं, अगर अल्लाह तआला अपने फ़ज़ल से किसी बन्दे को माफ़ फरमा दें तो इस से बढ़ कर और क्या चाहिए

Shabe Qadr Me Ibadat Kaise Karen | शबे क़दर में इबादत

ये रात अल्लाह का ख़ास इनआम है इसलिए इसके एक एक लम्हे को अल्लाह की इबादत करके खूब वसूल करना चाहिए

हुज़ूर सल्लल लाहु अलैहि वसल्लम ने फ़रमाया “कि जो शख्स शबे क़द्र में ईमान की हालत में और सवाब की नियत से (इबादत के लिए ) खड़ा हो तो उसके तमाम गुनाह माफ़ कर दिए जायेंगे”

इस रिवायत में खड़े होने का मतलब सिर्फ नमाज़ में ही खड़े होना ही नहीं है बल्कि चाहे नमाज़ पढ़े, या तिलावत करे, चाहे तस्बीह और इस्तेग्फार में लग जाये, सारी इबादतें इस में दाख़िल हैं, और सवाब की नियत का मतलब है कि ये इबादत सिर्फ इख्लास, अल्लाह को राज़ी करने के लिए और सवाब हासिल करने के लिए हो, दिखलावा और नुमाइश मक़सूद न हो

दो उलमा के अक़वाल शबे क़द्र के बारे में

अल्लामा आलूसी (रहमतुल लाहि अलैह) फरमाते हैं कि जहाँ तक हो सके इस रात में अलग अलग किस की इबादत करे जैसे नफ्ल पढ़ना, कुराने करीम की तिलावत करना, ज़िक्र करना और तस्बीह पढ़ना, दुआ और इस्तेग्फार करना इन सब का कुछ न कुछ हिस्सा अदा करे

 

हज़रत सूफ़ियान सोरी (रहमतुल लाहि अलैह) फ़रमाते हैं कि शबे क़द्र में दुआ करना, इस्तेग्फार करना नफ्ल पढने से ज़्यादा अफज़ल है, अगर कोई शख्स क़ुरान की तिलावत और दुआ व इस्तेग्फार दोनों को जमा करे ( यानि दोनों को पढ़ें ) तो ये और भी बेहतर है

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