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Shab e Meraj ki Haqeeqat (isara aur meraj ka bayaan) / शबे मेराज की हकीकत (इसरा और मेराज का बयान)

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Shab e Meraj ki Haqeeqat (isara aur meraj ka bayaan) / शबे मेराज की हकीकत (इसरा और मेराज का बयान)
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Shab E Meraj यह इस्लाम में एक मुक़द्दस रातो में से एक बरकत वाली रात हैं और इस शब् ए मेराज की कई Fazilat अल्लाह ने क़ुरान में और हदीसो में इसकी रिवायते हैं. 
 
Shab E Meraj में अल्लाह के रसूल ने जन्नत की सैर, नहरे कौसर पर तशरीफ आवरी, जहन्नम का मुआयना, और इसरा वल मिराज  Isra Wal Miraj वापसी का सफर का किस्सा निचे दिया गया हैं इसे शेयर करे। 
 
जन्नत की सैर शब् ए मेराज में Shab E Meraj

इस के बाद आप मोहम्मद मुस्तफा صلى الله عليه وسلم : सिद्रतुल मुन्तहा पर तशरीफ़ लाए , इस बार इस पर मुख़्तलिफ़ रंग छा गए । 

रिवायत में है कि फ़िरिश्तों ने अल्लाह Allah तबारक व तआला से प्यारे आका मोहम्मद मुस्तफा صلى الله عليه وسلم की जियारत करने की इजाज़त तलब की तो अल्लाह Allah ने उन्हें इजाज़त अता फरमा दी । 

वोह फ़िरिश्ते सिद्रह पर छा गए ताकि वोह हुजूर नबिय्ये रहमत मोहम्मद मुस्तफा صلى الله عليه وسلم  की जियारत का शरफ़ हासिल कर सकें । 

यहां से आप मोहम्मद मुस्तफा صلى الله عليه وسلم को जन्नत Jannat में लाया गया । इस में मोतियों की इमारतें थीं और इस की मिट्टी मुश्क थी , 

आप मोहम्मद मुस्तफा صلى الله عليه وسلم ने यहां चार किस्म की नरें मुलाहज़ा फ़रमाई : एक पानी की जो तब्दील नहीं होता , दूसरी दूध की जिस का जाइका नहीं बदलता , तीसरी शराब की जिस में पीने वालों के लिये सिर्फ लज्जत है ( नशा बिल्कुल नहीं ) और चौथी पाकीज़ा और साफ़ सुथरे शहद की । 

इस के अनार जसामत में डोलों की तरह और परन्दे ऊंटों की तरह थे , इस में अल्लाह Allah  ने अपने नेक बन्दों के लिये ऐसे ऐसे इन्आमात तय्यार कर रखे हैं , 

जिन्हें किसी आंख ने देखा न किसी कान ने सुना और न किसी इन्सान के दिल में इस का ख़याल गुज़रा । 

 

नहरे कौसर पर तशरीफ आवरी Shab E Meraj में 

जन्नत Jannat की सैर के दौरान आप मोहम्मद मुस्तफा صلى الله عليه وسلم एक नहर पर तशरीफ़ लाए जिस के किनारों पर जौफ़दार ( अन्दर से खाली किये हुवे ) मोतियों के खैमे थे 

और इस की मिट्टी ख़ालिस मुश्क थी । आप मोहम्मद मुस्तफा صلى الله عليه وسلم ने हज़रते जिब्राईल Jibreel से दरयाफ्त फ़रमाया : ऐ जिब्राईल Jibreel ! येह क्या है ?

 अर्ज किया : येह कौसर है जो आप मोहम्मद मुस्तफा صلى الله عليه وسلم के रब ने आप मोहम्मद मुस्तफा صلى الله عليه وسلم को अता फ़रमाई है । 

 

जहन्नम का मुआयना Shab E Meraj में 

जन्नत Jannat की सैर के बाद आप मोहम्मद मुस्तफा صلى الله عليه وسلم को जहन्नम का मुआयना कराया गया , वोह इस तरह कि आप मोहम्मद मुस्तफा صلى الله عليه وسلم  जन्नत Jannat में ही मौजूद थे और जहन्नम पर से पर्दा हटा दिया गया

' जिस से आप मोहम्मद मुस्तफा صلى الله عليه وسلم ने उसे मुलाहज़ा फ़रमा लिया । फिर आप मोहम्मद मुस्तफा صلى الله عليه وسلم से उसे बन्द कर दिया गया और आप मोहम्मद मुस्तफा صلى الله عليه وسلم वापस सिद्रतुल मुन्तहा पर तशरीफ़ लाए । 

 

वापसी का सफर Shab E Meraj में 

इस के बाद वापसी का सफ़र शुरू हुवा , वापस आते हुवे जब आप मोहम्मद मुस्तफा صلى الله عليه وسلم आस्माने दुन्या पर तशरीफ़ लाए और उस के नीचे नज़र फ़रमाई तो वहां गर्दो गुबार , शोरो गोगा और धुवां था । 

आप मोहम्मद मुस्तफा صلى الله عليه وسلم ने हज़रते जिब्राईल Jibreel से दरयाफ्त फ़रमाया : ऐ जिब्राईल Jibreel ! येह क्या है ? 

अर्ज किया : येह शयातीन हैं जो बनी आदम की आंखों पर मन्डलाते रहते हैं ताकि वोह ज़मीनो आस्मान की बादशाही में गौरो फ़िक्र न कर सकें अगर येह गर्दो गुबार वगैरा न होता तो लोग ( काइनात के ) अजाइबात देखते । 

मक्कतुल मुकर्रमा  के रास्ते में आप मोहम्मद मुस्तफा صلى الله عليه وسلم ने कुरैश के तीन तिजारती काफ़िले भी मुलाहज़ा फ़रमाए । 

 

Shab E Meraj Ki Fazilat शब् ए मेराज की फ़ज़ीलत

Shab E Meraj Ki Fazilat In Hindi: माहे रजब में एक रात ऐसी है जो बे शुमार बरकतों , अजमतों और फजीलतों वाली है , इसी रात हमारे प्यारे प्यारे शबे अस्रा के दूल्हा सल्लल्लाहो अलैवसल्लम को मे राज का अजीमुश्शान मो'जिज़ा अता हुवा । 

हज़रते अल्लामा अहमद विन मुहम्मद कस्तलानी बाज़ आरिफ़ोन ( यानी अल्लाह पाक  की पहचान रखने वाले बुजुर्गाने दीन ) का कौल नक्ल फ़रमाते हैं : 

सय्यिदे आलम को 34 मरतबा में राज हुई उन में से एक जिस्म ( और रूह ) के साथ और बाकी रूह के साथ ख़्वाबों की सूरत में हुई ।

 

Shab E Meraj Ki Fazilat और इंकार करना कैसा

सुवाल : Shab E Meraj का इन्कार करने वाले के लिये क्या हुक्म है ? 

( 1 ) अस्रा 

( 2 ) मेराज 

( 3 ) ए'राज या उरूज । हिस्सए अव्वल अस्रा कुरआने पाक की नस्से कई से साबित है । इसलिए पारह 15 सूरतुल अस्रा ( इस को सूरए बनी इसराईल भी कहते हैं ) की इब्तिदाई आयत में इर्शाद होता है 

तरजमए कन्जुल ईमान : पाकी  है  उसे  जो  रातों  रात  अपने  बन्दे  को  ले  गया  मस्जिदे  हराम  ( खानए  का'बा )   से  मस्जिदे  अक्सा  ( बैतुल  मुकास )  तक  जिस  के  गिर्दा  गिर्द  हम  ने  बरकत  रखी   कि  हम  उसे  अपनी  अज़ीम  निशानियां  दिखाएं ,  बेशक  वोह  सुनता  देखता  है । 

हज़रते अल्लामा मौलाना सय्यिद मुहम्मद नईमुद्दीन मुरादआबादी फ़रमाते हैं : सत्ताईसवीं रजब (27 Rajab) को में राज  हुई ।

मक्कए मुकर्रमा से हुजूरे पुरनूर सल्लल्लाहो अलैवसल्लम का बैतुल मुक़द्दस तक शब के छोटे हिस्से में तशरीफ़ ले जाना नस्से कुरआनी से साबित है । 

इस का मुन्किर ( इन्कार करने वाला ) काफ़िर है और आस्मानों की सैर और मनाज़िले कुर्व में पहुंचना अहादीसे सहीहा मो'तमदा मशहूरा से साबित है जो हद्दे तवातुर के करीब पहुंच गई हैं इस का मुन्किर ( इन्कार करने वाला ) गुमराह है 

Shab E Meraj हालते बेदारी जिस्म व रूह से हुई 

मे'राज शरीफ़ ब हालते बेदारी जिस्म व रूह दोनों के साथ वाकेअ हुई , येही जुम्हूर अहले इस्लाम का अकीदा है और अस्हाबे रसूल सल्लल्लाहो अलैवसल्लम की कसीर जमाअतें और हुजूर सल्लल्लाहो अलैवसल्लम के अजिल्लए अस्हाब इसी के मो'तकिद हैं । 

( खजाइनुल इरफान , स . 525 ) 

उरूज या ए राज या'नी सरकारे नामदार सल्लल्लाहो अलैवसल्लम के सर की आंखों से दीदारे इलाही करने और फौकुल अर्श ( अर्श से ऊपर ) जाने का मुन्किर ( इन्कार करने वाला ) खाती या'नी ख़ताकार है । 

 

आला हज़रात का Shab E Meraj Ki Fazilat पर बयान

शर्हे कलामे रज़ा : सरकारे आ'ला हज़रत इमाम अहमद रज़ा खान अपने मशहूर " क़सीदए मे'राजिया " के इस शे'र में फ़रमाते हैं : 

ऐ मे राजे मुस्तफा सल्लल्लाहो अलैवसल्लम के सफ़र को अक्ल के तराजू में तोलने वाले ! अपनी अक्ल को कह ! 

कि वोह इस " अजीमुश्शान मो'जिजे " के सामने अपने सर को झुका ले क्यूं कि अल्लाह पाक के प्यारे नबी , मक्की मदनी , मुहम्मदे अरबी सल्लल्लाहो अलैवसल्लम Shab E Meraj की रात अपने खालिको मालिक के पास “ ला मकां " तशरीफ़ ले गए,

जो कि हमारे गुमान में आ ही नहीं सकता क्यूं कि वोह ऐसा " मकाम " है जहां आगे , पीछे , ऊपर , नीचे , दाएं , बाएं , सब जिहतें ( या'नी सम्तें ) ख़त्म हो गई हैं 

बल्कि सम्तें खुद हैरानो परेशान हैं कि हुजूरे पाक सल्लल्लाहो अलैवसल्लम " कहां " तशरीफ़ ले गए हैं । 

 

प्यारे आक़ा का Shab E Meraj में Fazilat हासिल करने का अमल

1. रजब (Rajab) में एक दिन और रात है जो उस दिन रोज़ा रखे और रात को कियाम ( या'नी इबादत ) करे तो गोया उस ने सो साल के रोजे रखे और वोह सत्ताईस 

2. जो रजब (Rajab) के सत्ताईसवें दिन का रोज़ा रखेगा तो अल्लाह पाक (Allah Paak) उस के लिये साठ महीनों के रोज़ों का सवाब लिखेगा  

3. रजब में एक रात है कि उस में नेक अमल करने वाले के लिये 100 साल की नेकियों का सवाब लिखा जाता है और वोह रजब (Rajab) की सत्ताईसवीं शब है । 

जो इस में 12 रक्अत इस तरह पढ़े कि हर रक्अत में सूरए फ़ातिहा और कोई सी एक सूरत और हर दो रक्अत पर अत्तहिय्यात पढ़े और 12 पूरी होने पर सलाम फेरे , इस के बाद 100 बार 

"سُبْحَانَ اللَّهِ" (Subhanallah): (सुभानल्लाह)

"وَالْحَمْدُ لِلَّهِ" (Walhamdulillah): (वालहम्दुलिल्लाह)

"وَلَا إِلَهَ إِلَّا اللَّهُ" (La ilaha illallah): (ला इलाहा इल्लल्लाह)

"وَاللَّهُ أَكْبَر" (Allahu Akbar): (अल्लाहु अकबर)

पढ़े , 100 बार इस्तिफ़ार , 100 बार दुरूद शरीफ़ पढ़े और अपनी दुन्या व आख़िरत से मुतअल्लिक जिस चीज़ की चाहे दुआ मांगे और सुब्ह को रोज़ा रखे तो अल्लाह पाक उस की सब दुआएं कबूल फ़रमाए सिवाए उस दुआ के जो गुनाह के लिये हो। 

 

In English

Shab E Meraj (Night of Ascension): Shab E Meraj is considered a blessed night in Islam, mentioned in the Quran and Hadith. It is the night when Prophet Muhammad (PBUH) ascended to the heavens, visiting various celestial places.

Journey to Heaven: Prophet Muhammad (PBUH) traveled to the Sidratul-Muntaha, a celestial tree beyond which only the angels could pass.

In Jannah (Paradise), he witnessed extraordinary landscapes with rivers of water, milk, wine, and honey, along with trees made of gold and silver.

Visit to the Sidrah: Angels sought permission to accompany the Prophet on this journey to the Sidratul-Muntaha.

The Prophet encountered various types of birds and remarkable scenes.

Nahr Kausar (The Pool of Kausar): The Prophet saw a river in Jannah called Nahr Kausar, with banks adorned with pearls.

He observed pure and sweet water, along with various types of birds and animals.

Observing Hell: The Prophet also witnessed the torments of Hell during this journey, emphasizing the importance of seeking refuge from it.

Return Journey: On the return journey, the Prophet encountered angels guarding the heavens and witnessed the phenomena of dust and noise created by the devils.

Fazilat (Virtues) of Shab E Meraj: Fasting on the 27th day of Rajab is highly recommended, equivalent to fasting for seventy years.

Performing additional prayers (Qiyam) during the night of Shab E Meraj brings immense rewards.

Making special supplications and seeking forgiveness during this night is encouraged.

The 27th night of Rajab is considered a night of numerous blessings and virtues.

Disputes Regarding Shab E Meraj: Some argue that the events of Isra Wal Miraj are mentioned in the Quran, making it a valid and significant event.

Those who deny the significance of Shab E Meraj are considered misguided and are accused of rejecting established beliefs.

Guidelines for Spiritual Practices:

Observing Fasts: Fasting on the 27th day of Rajab is equivalent to fasting for seventy years.

Night Prayers: Performing additional prayers (Qiyam) during the night of Shab E Meraj is highly recommended.

Supplications: Making special supplications, seeking forgiveness, and offering additional prayers are encouraged.

Specific Recitations: Reciting specific phrases like "Subhanallah," "Walhamdulillah," "La ilaha illallah," and "Allahu Akbar" a specific number of times.

Dua for Worldly and Hereafter Needs: Seeking Allah's blessings for both worldly and hereafter needs during this night.

Conclusion: Shab E Meraj is a significant event in Islam, marked by Prophet Muhammad's miraculous night journey. Believers observe special practices and prayers on this night, seeking spiritual elevation and blessings.

 

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