नवाज़ा गया है मुझे इस तरह से
मुक़द्दर का मुझ को धनी कर दिया है
मैं अब और क्या माँगूँ अपने ख़ुदा से
ख़ुदा ने मुझे अज़हरी कर दिया है
न जाने के किस हाथ पे जा के बिकते
न जाने कहाँ और हम कैसे दिखते
ग़ुलामी पे अख़्तर की क़ुर्बान जाएं
के जिसने हमें जन्नती कर दिया है
यकायक ही बदला बहारों का मौसम
घुला इस में अख़्तर की रेहलत का जब ग़म
वो इक गुल जो टूटा रज़ा के चमन से
तो फीका हर इक रंग ही कर दिया है
ए ताहिर ! अजब कुछ नहीं रोज़-ए-महशर
उसे बख़्श दे रब की रहमत ये कह कर
जनाज़े में अख़्तर के शामिल हुवा तू
जा दोज़ख़ से तुझ को बरी कर दिया है
शायर:
ताहिर रज़ा रामपुरी
नातख्वां:
ताहिर रज़ा रामपुरी
नवाज़ा गया है मुझे इस तरह से / Nawaaza Gaya Hai Mujhe Is Tarah Se
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