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ईदुल अज़हा के मुबारक मौक़े पर मुसलमानो के लिये एक हसीन पेशकश

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ईदुल अज़हा के मुबारक मौक़े पर मुसलमानो के लिये एक हसीन पेशकश

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👉 ∙ क़ुर्बानी की फ़ज़ीलत व अहमियत

👉 ∙ क़ुर्बानी के मसाइल

👉 ∙ क़ुर्बानी किस पर वाजिब है?

👉 ∙ क़ुर्बानी का जानवर कैसा होना चाहिये?

👉 ∙ ईदुल अज़हा के दिन के आमाल

👉 ∙ नमाज़े ईद का तरीक़ा

 

👉 ∙ ईदुल अज़हा का मक़सद

तुम अपने रब के लिये नमाज़ पढ़ो और क़ुर्बानी करो. (सुरह कौसरः 2)

 

👁‍🗨 कुर्बानी की फ़ज़ीलत व अहमियत

कुर्बानी का ख़ून ज़मीन पर गिरने से पहले ही क़बूल कर लिया जाता  है

 

• हदीसे पाकः यौमे नहर (10 ज़िल हिज्जा) को आदमी का कोई अ़मल ख़ुदा के नज़दीक क़ुर्बानी करने से ज़्यादा प्यारा नहीं और वह जानवर क़यामत के दिन अपने सींग, बाल और खुरों के साथ आएगा और क़ुर्बानी का ख़ून ज़मीन पर गिरने से पहले ही क़बूल कर लिया जाता है, लिहाज़ा उसे ख़ुशदिली से करो!  (तिरमिज़ी, जिल्द 1, पेज 180)

 

🔪 कुर्बानी न करने वाला ईदगाह के क़रीब न आयेः-

 

• हदीसे पाकः जिस में वुस्अ़त हो (जो क़ुर्बानी कर सकता हो) और क़ुर्बानी न करे वह हमारी ईदगाह के क़रीब न आये.

 

🌹 हर बाल के बदले 10 नेकियां-

• हदीसे पाकः हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने फ़रमाया (क़ुर्बानी) में हर बाल के बदले 1 हस्ना (10 नेकियां) हैं,

 

सहाबा ने अ़र्ज कियाः  ऊन का क्या हाल है या रसूलल्लाह ?

 हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने फ़रमायाः

 ऊन के हर बाल के बदले में भी 1 हस्ना (10 नेकियां) हैं।  (इब्ने माजा, पेज 226)

 

     👁‍🗨🔪  कुर्बानी के मसाइल👇

 

क़ुर्बानीः- ख़ास जानवर को ख़ास दिन में सवाब हासिल करने की नियत से ज़ब्ह करना क़ुर्बानी है!

 

• क़ुर्बानी करना हर बालिग़, मुक़ीम (मुसाफिर पर नहीं), मर्द व अ़ौरत व मालिके निसाब पर वाजिब है!

 

• मालिके निसाब वह है जिसके पासः-

• साढ़े सात तोला सोना (93.312 ग्राम) या साढ़े बावन तोला चांदी (653.184 ग्राम) या 

• उनमें से किसी एक की मालियत की रक़म या 

• इतनी मालियत की तिजारत का सामान या

• इतनी मालियत का सामान हाजते असलिया के अ़लावा हो.

 

हाजते असलियाः- से मुराद वह चीज़ें हैं कि ज़िन्दगी गुज़ारने के लिये जिन की ज़रुरत पड़ती है,

जैसेः- रहने के लिये घर, पहनने के लिये सर्दी-गर्मी के कपड़े, आने जाने के लिये सवारी वग़ैरह!

 

• अगर किसी पर क़ुर्बानी वजिब है और उस वक़्त उसके पास रुपये नहीं हैं तो क़र्ज़ लेकर या कोई चीज़ बेचकर कु़र्बानी करे!

• अगर घर में कई लोग मालिके निसाब हों तो हर एक पर अलग-अलग क़ुर्बानी वाजिब है!

 

• कुछ लोग अपने फौत शुदा मां-बाप वग़ैरह की तरफ सेे क़ुर्बानी करते हैं, अपनी तरफ से नहीं करते, अगर वह मालिके निसाब हैं तो उन पर अपनी तरफ से क़ुर्बानी करना ज़रुरी है, दूसरों के लिये दूसरी कुर्बानी करें! 

 

• क़ुर्बानी के गोश्त के 3 हिस्से किये जाएं.

एक हिस्सा ग़रीबों के लिये,

 एक हिस्सा दोस्त व अह़बाब के लिये और

एक हिस्सा अपने घर वालों के लिये रखे!

 

  📍   क़ुर्बानी के जानवर का बयान    📍

 

• क़ुर्बानी के जानवर 3 तरह के हैंः-

 1. ऊंट  5 साल.

 2. भैंस  2 साल

 3. बकरी 1 साल

 

• नर, मादा, ख़स्सी व ग़ैरे ख़स्सी सब की क़ुर्बानी हो सकती है!

 

• क़ुर्बानी के जानवर का बेऐब होना ज़रुरी है, अगर थोड़ा सा हो जैसे कान में सूराख़ वग़ैरह तो क़ुर्बानी मकरूह होगी और अगर ज़्यादा ऐब हो तो होगी ही नहीं.

 

📌 • नोटः- भेड़ का बच्चा (बकरी का नहीं) अगर 1 साल इतना बड़ा है कि दूर से देखने में साल भर का मालूम होता हो तो उसकी क़ुर्बानी जाएज़ है!

 

• जिसके पैदायशी सींग न हों तो उसकी क़ुर्बानी जाएज़ है,

 

 अगर सींग थे मगर टूट गये तो अगर जड़ समेत टूटे हैं तो क़ुर्बानी न होगी, अगर सिर्फ ऊपर से टूटे हैं जड़ सलामत है तो हो जाएगी!

 

🔪 • क़ुर्बानी करते वक़्त जानवर उछला कूदा जिसकी वजह से ऐब पैदा हो गया तब क़ुर्बानी हो जाएगी!

 

      🕰🕗    क़ुर्बानी का वक़्त     🕗🕰

 

• 10 वीं ज़िलहिज्जा के सुब्ह सादिक़ से 12वीं के सूरज डूबने तक है, यानि 3 दिन और 2 रातें.

• पहला दिन सबसे अफ़ज़ल है

 फिर दूसरा फिर तीसरा.

• रात में क़ुर्बानी करना मकरूह है!

 

• अगर शहर में क़ुर्बानी की जाए तो ज़रूरी है कि नमाज़ के बाद हो, देहात में चूंकि ईद की नमाज़ नहीं होती इसलिये यहां फजर के तुलू के बाद ही हो सकती है.

 

• शहर में अगर कई कई जगह नमाज़ होती हो पहली जगह नमाज़ हो जाने के बाद भी क़ुर्बानी हो सकती है, यह ज़रूरी नहीं कि ईदगाह में नमाज़ हो जाने के बाद ही हो.

 

     🎤 ईदुल अज़हा के दिन क्या करेें ? 👇

 

ईदुल अज़हा के दिन यह बातें मुस्तहब हैंः-

 

(1) नमाज़ अदा करने से पहले कुछ न खाये, चाहे क़ुर्बानी न करनी हो, अगर खा लिया तो कराहत (बुराई) नहीं.

 

(2) ईदगाह के रास्ते में बुलन्द आवाज़ से तकबीर कहता हुआ जाए.

 

(3) क़ुर्बानी करनी हो तो मुस्तहब (बेहतर) है कि पहली से दसवीं ज़िलहिज्जा तक न हजामत बनवाये, न नाख़ुन तरशवाये.

 

(4) 9 वीं ज़िलहिज्जा की फजर से 13 वीं की अस्र तक हर नमाज़ के बाद जो जमाते मुस्तहब्बा के साथ अदा की गयी हो,

1 बार बुलन्द आवाज़ से तकबीरे तश्रीक़ कहना वाजिब है* और तीन बार अफ़ज़ल.

 

          👇 तकबीरे तश्रीकः-    👇  

 

अल्लाहु अकबर अल्लाहु अकबर, ला इलाहा इल्लल्लाहु, वल्लाहु अकबर अल्लाहु अकबर, व लिल्लाहिल हम्द

 

    👑 ईद की नमाज़ पढ़ने का त़रीक़ा 👑

 

• पहले इस तरह नियत करें

 ‘‘नियत की मैंने 2 रकअ़त नमाज़ वाजिब ईदुल अज़हा की, 6 तकबीरों के साथ, अल्लाह तअ़ाला के लिये, पीछे इस इमाम के, मुंह मेरा काअ़बा शरीफ़ की तरफ़’’

 

• फिर कानों तक हाथ उठायें और अल्लाहु अकबर कहकर हाथ बांध लें

• फिर सना पढ़ें

 

• फिर 2 बार हाथ उठायें और अल्लाहु अकबर कहकर हाथ छोड़ दें.

• तीसरी बार फिर हाथ उठायें और अल्लाहु अकबर कहकर हाथ बांध लें

 

• इसके बाद इमाम साहब क़िरत, रुकू, सजदे वग़ैरह से फारिग़ होकर दूसरी रकअ़त अल्हम्दु और सूरत के साथ मुकम्मल करेंगे.

• इमाम साहब के क़िरत से फारिग़ होने के बाद 3 बार अल्लाहु अकबर कहते हुये कानों तक हाथ ले जायें और किसी बार हाथ न बांधें

 

• चौथी बार बग़ैर हाथ उठाये अल्लाहु अकबर कहते हुये रुकू में जायें और बाक़ी नमाज़ दूसरी नमाज़ों की तरह पूरा करें.

• सलाम फेरने के बाद ख़ुत्बे सुनें और दुअ़ा मांगें.

 

       🕌  ईदुल अज़हा का मक़सद 🕌

 

• प्यारे सुन्नी भाइयो! ईदुल अज़हा हमारे प्यारे आक़ा सल्लल्लाहु अ़लैहि वसल्लम की सुन्नत और अल्लाह के ख़लील हज़रत इब्राहीम अ़लैहिस्सलाम की यादगार है!

 

अल्लाह के हुक्म से आप ने अपने प्यारे बेटे हज़रत इस्माईल अ़लैहिस्सलाम की गर्दन पर छुरी चला दी,

लेकिन अल्लाह ने जन्नत से मेंढा भेजकर आपको बचा लिया लेकिन आपको क़ुर्बानी का सवाब अता फरमा दिया!

 

हज़रत इब्राहीम अ़लैहिस्सलाम का तर्ज़े अ़मल हमें पैग़ाम देता है

कि हमारी जान-माल, आल-औलाद सब अल्लाह की है, हमारे और हमारी औलाद के दिल में यह जज़्बा होना चाहिये कि अगर वक़्त पड़े तो हम अपना सब कुछ अल्लाह के लिये क़ुर्बान कर दें.

 

• माहे ज़िलज्जिा बड़ी फज़ीलत व अहमियत का हामिल है. इसी तरह क़ुर्बानी के अय्याम भी,

 

लेकिन यह दिन सिर्फ नये कपड़े पहनने, गोश्त हासिल करने, खाने-पकाने का नहीं है बल्कि अल्लाह की इ़बादत व रियाज़त व ग़रीबों ज़रुरतमंदों की हाजत पूरी करके अल्लाह की ख़ुशनूदी हासिल करने का दिन है.

 

🥘 • क़ुर्बानी का गोश्त अ़ाम तौर से उन घरों में ज़्यादा पहुंचता है जहां उसकी ज़रूरत नहीं होती, यहां तक की बहुत से घरों में लोग स्टाक लगाकर जैसे तैसे ख़त्म करते हैं! 

 

हालांकि हमारे भाइयों में बहुत से ऐसे होते हैं कि जिन के यहां पकाने भर तक गोश्त नहीं पहुंच पाता. इसलिये क़ुर्बानी का गोश्त ऐसे लोगों तक पहुंचाईये, मुख़्तलिफ़ तरीक़ों से उनकी मदद कीजिये ताकि वह भी आपकी ख़ुशयों में शरीक हो सकें!

 

बेशक अल्लाह तअ़ाला मोहसिनों के अज्र को ज़ाए नहीं फरमाता!

 

🤲- अल्लाह पाक से दुआ है कि हम सबको सही मानों में क़ुर्बानी करने और उसके अह़कामात पर अमल करने की तौफीक़ अ़ता फरमाए!

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