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Tamheed-E-Imaan Post 1 | Imaan Kya Hai | Musalman Kon Hai | Deen-E-Islam Kya Hai

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Tamheed-E-Imaan Post 1 | Imaan Kya Hai | Musalman Kon Hai | Deen-E-Islam Kya Hai

  𝐓𝐀𝐌𝐇𝐄𝐄𝐃-𝐄-𝐈𝐌𝐀𝐀𝐍   
𝐁𝐀𝐀 𝐀𝐀𝐘𝐀𝐀𝐓-𝐄-𝐐𝐔𝐑’𝐀𝐀𝐍  | Imaan Kya Hai  
✨✨✨      
तम्हीद – ए – ईमान  
बाआयात–ए–कुरआन

 

Tamheed-E-Imaan Post 1 | Imaan Kya Hai | Musalman Kon Hai |   

  ᴘᴏsᴛ 1️⃣

!!… दीन–ए–इस्लाम क्या है ❓…!!!

❣️फरमान–ए–कुरआन–ए–पाक❣️  
اِنَّآ اَرْسَلْنٰکَ شَاھِدًا وَّمُبَشِِّرًا وَّنَذِیْرًا o لِِّتُؤمِنُوْا بِا اللّٰہِ وَرَسُوْلِہٖ وَتُعَزِِّرُوْہُ وَتُوَقِِّرُوْہُ وَتُسَبِِّحُوْہُ بُکْرَۃً وَّاَصِیْلاً o

तर्जमा; कंजूल ईमान शरीफ :– ऐ नबी ! बेशक हमने तुम्हें भेजा गवाह और खुश खबरी देता और डर सुनता ताकि ऐ लोगो तुम अल्लाह और उसके रसूल पर ईमान लाओ और रसूल की ताज़ीम–ओ– तौक़ीर करो और सुबह–ओ–शाम अल्लाह की पाकी बोलो ।  
Imaan Kya Hai  
(सूरह–अल–फतह, पारा–26, रूकू–09, आयत–8:9)  

 

✍️ नोट :– मुसलमानो देखो दीन ए इस्लाम भेजने और कुरआन मजीद उतारने का मकसूद (मक़सद) ही तुम्हारा मौला तबारक वा ताआला (ﷻ) तीन 3️⃣ बातें इरशाद फरमाता है ।
1️⃣👉 यह की लोग अल्लाह (ﷻ) और उसके प्यारे रसूल  (ﷺ) पर ईमान लाएं ।

2️⃣👉 यह की लोग रसूल ए पाक (ﷺ) की ताज़ीम (अदब) करें ।

3️⃣👉 यह की लोग अल्लाह (ﷻ) की इबादत में रहे ।
मुसलमानो इन तीन 3️⃣ जलील (बड़ी) बातों की जमील (खूबसूरत) तरतीब तो देखो ।
“सबसे पहले ईमान को फरमाया” और “सबसे आखिर में अपनी इबादत को” और बीच में “अपने प्यारे हबीब  (ﷺ) की ताज़ीम (अदब) को फरमाया” क्यों की बगैर ईमान के ताज़ीम (अदब) करना कुछ फायदे मंद नहीं ।
बहुत ऐसे नसारा (ईसाई) है जो नबी ए करीम (ﷺ) की ताज़ीम–ओ–तौक़ीर में किताबें लिख चुके, नात ए पाक लिख चुके, लेक्चर दे चुके । 

 

!!!…मगर जब की ईमान न लाए कुछ फायदा नहीं…!!!
क्यों की ये जाहिरी ताज़ीम है, अगर दिल में हुजूर ए अकरम  (ﷺ) की सच्ची अजमत (अदब) होती तो जरूर ईमान लातें ।
फिर जब तक दिल में हुज़ूर ए अकरम (ﷺ) की सच्ची अजमत (अदब) न हो उम्र भर अल्लाह (ﷻ) की इबादत में काट से सब बेकार और मरदूद (खुदा की बारगाह से निकाला हुआ) है । 
बहुत ऐसे जोगी और राहिब (जो दुनिया से किनारा करके एकांत की जिंदगी गुजारते हैं) वो दुनिया को छोड़ का अपने तौर पर अल्लाह (ﷻ) का जिक्र करते हैं और इबादत करते हैं। बल्कि उनमें तो बहुत ऐसे है जो (ला इलाहा इल लल्लाह) का जिक्र सीखते हैं और जर्बे (रट्टा) लगाते हैं।
“मगर ये की दिल में हुज़ूर ए अकरम (ﷺ) की सच्ची अजमत (अदब) नहीं तो क्या फायदा ऐसे अमल खुदा की बारगाह में क़ुबूल नहीं ।”


ऐसे लोगों के बारे में अल्लाह (ﷻ) फरमाता हैं

وَقَدِمْنَآ اِلٰی مَا عَمِلُوْا مِنْ عَمَلٍ فَجَعَلْنٰہُ ھَبَآءً مَّنْشُوْرًا o
तर्जमा; कंजुल ईमान शरीफ़ :– जो कुछ आमाल उन्होंने किए हमने सब बरबाद कर दिए ।

(सूरह– अल–फुरकान, पारा–19, रूकू–01, आयत–23)

 

और फरमाता है
عَامِلَۃٌ نَّاصِبَۃٌ o تَصْلٰی نَارًا حَامِیَۃٌ   
तर्जमा; कंजुल ईमान शरीफ :– अमल करें मुसक्कते भरें और बदला क्या होगा ? यही की भड़कती आग में डाले जाएंगे। 
(सूरह– अल–गशियाह, पारा–30, रुकू–13, आयत–3:4)

 

✍️ नोट :– मुसलमानो कहो हुज़ूर ए अकरम (ﷺ) की ताज़ीम (अदब)

“मदार ए ईमान (यानी ईमान की बुनियाद)”

“मदार ए निजात (यानी बख्शीश का जरिया)”

और “मदार ए कुबूल ए अमल (यानी अमल का क़ुबूल होना)

           ???…..हुआ या नहीं…..???

       !!!…कहो हुआ और जरूर हुआ…!!!

यानी ईमान, निजात, और अमल की बुनियाद हुज़ूर ए अकरम (ﷺ) की ताज़ीम (अदब) पर ठहरा है ।

 

सब से अहम ईमान है मगर दिल में हुज़ूर ए अकरम (ﷺ) की सच्ची अजमत (अदब) न हो तो वो भी जाता रहेगा ।

 

    ???…ईमान वाला (मुसलमान) कौन है…???
قُلْ اِنْ كَانَ اٰبَآؤُكُمْ وَ اَبْنَآؤُكُمْ وَ اِخْوَانُكُمْ وَ اَزْوَاجُكُمْ وَ عَشِیْرَتُكُمْ وَ اَمْوَالُ ٌِا قْتَرَفْتُمُوْھَا وَ تِجَارَةٌ تَخْشَوْنَ كَسَادَهَا     وَ مَسٰكِنُ تَرْضَوْنَهَاۤ اَحَبَّ اِلَیْكُمْ مِّنَ اللّٰهِ وَ رَسُوْلِهٖ وَ جِهَادٍ فِیْ سَبِیْلِهٖ فَتَرَبَّصُوْا حَتّٰى یَاْتِیَ اللّٰهُ بِاَمْرِهٖؕ- وَ اللّٰهُ لَا یَهْدِی الْقَوْمَ الْفٰسِقِیْنَ۠ o

तर्जमा:– “ऐ नबी ! तुम फरमा दो की ऐ लोगो ! अगर तुम्हारे बाप, तुम्हारे बेटे, तुम्हारे भाई, तुम्हारी बीवियां, तुम्हारा कुम्बा, तुम्हारी कमाई के माल और वह सौदागरी जिसके नुकसान का तुम्हें अंदेशा है और तुम्हारी पसंद के मकान उनमें कोई चीज़ भी अगर तुमको अल्लाह और उसके रसूल (ﷺ) और उसकी राह में कोशिश करने से ज्यादा महबूब है तो इंतज़ार रखो यहां तक अल्लाह अपना अज़ाब उतारे और अल्लाह ता’आला बेहुक्मो को राह नहीं देता !”
(सूरह–अत–तौबा, पारा–10, रुकु–09, आयत–24)  
✍🏻 नोट :– इस आयत से मालूम हुआ कि जिसे दुनिया जहान में कोई मुअज्जम (Respected) कोई अज़ीज़ कोई माल कोई चीज़ अल्लाह (ﷻ) और उसके रसूल  (ﷺ) से ज़्यादा महबूब हो वह बारगाहे इलाही से मरदूद (निकाला हुआ) है। अल्लाह (ﷻ) उसे अपनी तरफ राह नहीं देगा उसे अज़ाब ए इलाही के इंतज़ार में रहना चाहिए यानी अगर कोई अल्लाह (ﷻ) और उसके प्यारे रसूल  (ﷺ) से ज़्यादा किसी और चीज़ से मोहब्बत करता है तो उसे अज़ाब का मज़ा ज़रूर चखना है।


          !!!….अल्लाहू अकबर…!!!  
तुम्हारे प्यारे नबी  (ﷺ)   इरशाद फरमाते हैं:—
لا یومن احد کم حتی اکون احب الیہ من والدہ والدہ والناس اجمعین
तर्जमा:— “तुम में से कोई मुसलमान न होगा जब तक मैं उसे उसके मां, बाप, औलाद और sb आदमियों से ज़्यादा प्यारा न हो जाऊं।”

 

✍🏻नोट:— यह हदीस ए पाक सहीह बुखारी व सहीह मुस्लिम में ‘हज़रत अनस इब्ने मालिक अंसारी’ 
رضی اللہ تعالٰی عنہ 
से मरवी है इसमें तो ये बात साफ फरमा दी गई की जो हुज़ूर ए अकरम  (ﷺ) से ज़्यादा किसी को अज़ीज़ रखे हरगिज़ मुसलमान नहीं हो सकता । 
  “मुसलमानों कहो हुज़ूर ए अकरम (ﷺ) को तमाम जहान से ज़्यादा महबूब रखना
मदार ए ईमान ( यानी ईमान की बुनियाद)
और मदार ए निजात (यानी बख्शीश का जरिया) 
हुआ या नहीं ???”


      💯!!!.. कहो हुआ और ज़रूर हुआ…!!!💯
यानी उन्हीं की मोहब्बत ईमान है और उसी से निजात हासिल होगी । यहां तक तो सारे कलीमागो (कलमा पढ़ने वाले) खुशी खुशी क़बूल कर लेंगे की हां हमारे दिल में हुज़ूर ए अकरम  (ﷺ) की अज़ीम अजमत है । हां हां मां, बाप, औलाद सारे जहान से ज़्यादा हमें हुज़ूर ए पाक  (ﷺ) की मोहब्बत है । भाईयो ! खुदा ऐसा ही करे मगर यहां तो इम्तेहान की ठहरी है…!!!

 

 ईमान क्या है ❓   
बिला शक्को–शुबह हुज़ूर ए अकरम  (ﷺ) से सच्ची मोहब्बत ही का नाम ईमान है। 
मुजद्दिद ए दीनो मिल्लत, इमाम ए इश्को मोहब्बत, सय्यदी सरकार ए आलाहज़रत (رضی اللہ تعالٰی عنہ) फरमाते हैं:—
हुज़ूर पुरनूर (ﷺ) को हर बात में सच्चा जाने, हुज़ूर ए पाक  (ﷺ) की हक्कानियत को सिद्क दिल से माने, दिल में अल्लाह (ﷻ)  और उसके प्यारे रसूल  (ﷺ) की मोहब्बत तमाम जहान वालों से ज़्यादा हो, अल्लाह (ﷻ) और उसके प्यारे रसूल (ﷺ) के प्यारों से मोहब्बत रखे अगरचे अपने दुश्मन ही क्यू ना हो, और अल्लाह (ﷻ) और उसके प्यारे रसूल (ﷺ) के हर गुस्ताख, हर मुखालिफ, से सच्ची नफरत रखे अगर्चे अपने जिगर के टुकड़े ही क्यू ना हो ।   !!!!!….. यही ईमान है…..!!!!!

Tamheede Imaan Sharif Post 2

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