हर साल पुरी दुनियाँ के मुसलमान करोड़ों जानवरों की क़ुर्बानी कर के सुन्नते इब्राहिम की याद ताज़ह करते हैं! जो आज से सवा पाँच हज़ार साल पहले अरब की सरज़मीन में अल्लाह ताला के घर के पास पेश आया था! कैसा वो वक़्त रहा होगा जब एक बूढ़े और शफ़ीक़ बाप ने अपने दिलो व जान से प्यारे बेटे से कहा होगा! ऐ मेरे प्यारे बेटे! मैं ने ख़्वाब में देखा है के मैं तुझे ज़बह कर रहा हूँ तो बता तेरी क्या राए है?
तो अल्लाह के मुक़द्दस क़ुरआन में है कि उस प्यारे बेटे ने जवाब दिया: अब्बा जान! आप को जो हुक्म दिया जा रहा है उसे कर डालिए, आप इंशाअल्लाह मुझे सब्र करने वालों में से पाएँगे! तो फिर उस प्यारे से बेटे ने ख़ुशी ख़ुशी अपनी मासूम सी गर्दन ज़मीन पर इसलिए डाल दी ताके अल्लाह ताला की रज़ा और उसके हुक्म की तामील हो जाए और फिर उस पर छुरी फेर दी जाए! तो एक ज़ईफ़ और रहम दिल बाप ने अपने दिलो व जान से प्यारे बेटे की सीने पर घुटना टेक कर उस की मासूम सी गर्दन पर इसलिए छुरी फेर देने का इरादह कर लिया के उसके रब की यही मर्ज़ी और हुक्म है!
तो अल्लाह ताला ने क़ुरआन मजीद में ईरशाद फरमाया: और हम ने उन्हें आवाज़ दी के ऐ इब्राहिम! बस तुम ने अपना ख़्वाब सच कर दिखाया, हम वफ़ादार बन्दों को ऐसे ही बदला देते हैं, यक़ीनन ये एक खुली आज़माइश थी!
Qurbani Ki Dua Hindi Me:
इन्नि वज्जहतु वजही य लिल्लज़ी फ त रससमावाति वल अर द हनीफव व मा अना मिनल मुशरीक़ीन ! इन्नास सलाती व नुसुकि व महया य व म माती लिल्लाही रब्बिल आलमीन! ला शरीका लहू व बिजालीक उमिरतु व अना मिनल मुस्लिमीन! अल्लाहुम्मा मिन क व लक बिसमिल्लाही अल्लाहु अकबर!
Qurbani Dua In English
Inni Waz Jahtu Wajahi Ya Lillazi Fa Ta Rassamawati Wal Arz Hanifaun Wa Ma Ana Minal Mushriqeen! Inna Salati Wa Nusuki Wa Mahya Ya Wa Ma Mati Lillahil Rabbil Aalmin! La Sharika Lahu Wa Bizalik Umirtu Wa Ana Minal Muslimin! Allahumma Min Ka Wa Lka Bismillahi Allahu Akbar!
Qurbani Ki Dua Arabic
ٕاِنِّيْ وَجَهْتُ وَجْهِيَ لِلَّذِيْ فَطَرَ السَّمٰوَاتِ وَالأَرْضِ حَنِيْفاََ وَّ ماَ أَناَ مِنَ الْمُشْرِكِيْنَ إِنَّ صَلَاتِيْ وَ نُسْكِيْ وَمَحْياَيَ وَمَمَاتِيْ لِلّٰهِ رَبِّ الْعٰالَمِيْنَ لاَ شَرِيْكَ لَهُ وَبِذٰالِكَ اُمِرْتُ وَمَا أَنَا مِنَ الْمُسْلِمِيْنَ اَللّٰهُمَّ مِنْكَ وَ لَكَ بِسْمِ اللهِ الله أَكْبَرْ
हिन्दी में तर्जूमा:
मैं ने अपना मुँह उस ज़ात की तरफ़ किया जिसने आसमान और ज़मीन को पैदा किया, मैं इब्राहिम अलैहिस्सलाम की मिल्लत पर हूँ, जो हनीफ़ और मुस्लिम थे, मैं मुशरीक़ो में से नहीं हूँ, बेशक मेरी नमाज़, मेरी क़ुर्बानी, मेरी ज़िन्दगी और मेरी मौत सब अल्लाह ताला के लिए है, उसका कोई शरीक नहीं, मुझे इसी बात का हुक्म दिया गया है, और मैं सब से पहले फरमाबरदार हूँ, ऐ अल्लाह! ये क़ुर्बानी तेरी तौफ़ीक़ से है और तेरे लिए है!
Qurbani Ka Tarika
Note: ये दुआ पढ़ कर ज़बह करे! ज़िबह करने के बाद अगर अपनी तरफ से क़ुर्बानी की है तो ये दुआ पढ़े👇
Qurbani Ke Baad ki Dua
अल्लाहुम्मा तकब्बल मिन्नी कमा तकब्बलता मिन ख़लीलेका इब्राहीम व हबिबेका मोहम्मद सल्लाहो अलैहि वसल्लम
Qurbani Ke Baad Ki Dua In English
Allahumma Taqabbal Minni Kama Taqabbalta Min Khalileka Ibrahim Wa Habibeka Mohammad Sallaho Alahi Wasallam
Qurbani Ke Baad Ki Dua In Arabic
اللهم تقبل مني كما تقبلت من خليلك ابراهيم و حبيبك محمد صلى الله عليه وسلم
Note: अगर किसी दूसरे के नाम से किया हो तो लफ़्ज़े मिन्नी की जगह मीन फलाँ इब्ने फलाँ कहे जैसे (हामिद रज़ा इब्ने अख्तर)
ख़ास जानवर को ख़ास दिन में ब नीयते तक़ररुब ज़बह करना क़ुर्बानी है और कभी उस जानवर को भी क़ुर्बानी कहते हैं जो ज़बह किया जाता है! क़ुर्बानी हज़रते इब्राहिम अलैहिस्सलाम की सुन्नत है जो उम्मते मोहम्मदिया के लिए बाक़ी रखी गई और नबी करीम सल्लाहो अलैहि वसल्लम को क़ुर्बानी करने का हुक्म दिया गया! तो क़ुरआन में ईरशाद फरमाया गया: तुम अपने रब के लिए नमाज़ पढ़ो और क़ुर्बानी करो!
Musalman Qurbani Kyu Karte Hain?
क़ुर्बानी करने का हुक्म अल्लाह ताला और उसके प्यारे हबीब सल्लाहो अलैहि वसल्लम ने दिया है! और ये कुछ शर्तों के साथ मुसलमान पर वाजिब होती है! इसलिए हम क़ुर्बानी करते हैं अल्लाह ताला ने क़ुर्बानी का हुक्म देते हुए क़ुरआन मजीद में ईरशाद फरमाया तो तुम अपने रब के लिए नमाज़ पढ़ो और क़ुर्बानी करो! तो इस हुक्म पर हम अमल करने के लिए क़ुर्बानी करते हैं इसी तरह जब हुज़ूर सल्लाहो अलैहि वसल्लम की बारगाह में सहाबा ए केराम रज़ीअल्लाहो ताला अन्हुम ने अर्ज़ की के ये क़ुर्बानीयाँ क्या हैं? तो आप सल्लाहो अलैहि वसल्लम ने ईरशाद फरमाया: क़ुर्बानी करना तुम्हारे बाप हज़रते इब्राहिम अलैहिस्सलाम का तरीका है!
Qurbani Kin Logon Par Wajib Hai?
10 वीं ज़िल्हिज्जा के सुब्ह सादिक़ से ले कर 12 वीं ज़िल्हिज्जा के सूरज डूबने के बीच अगर कोई मुसलमान आक़ील, बालिग़, मोक़ीम और साहिबे निसाब हो और वो निसाब उसके क़र्ज़ और ज़रुरियाते ज़िन्दगी में डूबा हुआ न हो तो इस सूरत में क़ुर्बानी वाजिब होगी! और जो शरीयत के ऐतबार से मुसाफ़िर हो उस पर क़ुर्बानी वाजिब नहीं है!
Kaun Se Janwar Ki Qurbani Sahi Hai?
जो जानवर क़ुर्बानी की उम्र पूरी कर चुके हों उन की क़ुर्बानी करना सही है! अगर चे उन्हों ने दाँत न निकाले हों! क़ुर्बानी के सही होने के लिए ऊँट की उम्र कम से कम पाँच साल होनी चाहिए, गाय भैंस की उम्र दो साल और बकरा, बकरी, दुम्बा, दुम्बी और भेड़ की एक साल होना ज़रूरी है! अगर दुम्बा या भेड़ का छः महीने का बच्चा इतना बड़ा हो के दूर से देखने मे साल भर का लगता हो तो उसकी क़ुर्बानी भी सही है! ख़्याल रहे क़ुर्बानी सही होने के लिए जानवरों की उम्र पूरी होना ज़रूरी है न के दाँत निकालना!
Eid Ke Kaun Se Din Qurbani Karna Afzal Hai?
ईद के तीनों दिन क़ुर्बानी करना सही है लेकिन पहले दिन क़ुर्बानी करना अफ़ज़ल है! ख़्याल रहे के ईद-उल-अदहा के दिन जानवर ज़बह करने से अफ़ज़ल कोई भी काम नहीं है! अगर कोई मजबूरी न हो तो पहले ही दिन क़ुर्बानी करनी चाहिए! अगर किसी के घर में क़ुर्बानी के दूसरे या तीसरे दिन दावत होती है इस कारण से वो पहले दिन क़ुर्बानी नही करता तो उसे चाहिए के पहले दिन क़ुर्बानी कर के उसका गोश्त फ़्रिज में रख दें और अगले दिन दावत में इस्तेमाल कर लें! क्यूँ के एक दो दिन में गोश्त के स्वाद में कोई ख़ास फ़र्क़ नही आता सिर्फ़ अपनी लज़ते नफ़्स के लिए पहले दिन क़ुर्बानी के अज़ीम सवाब से महरूम हो जाना अक़ल मंदी नही बल्के महरूमी है!
Qurbani Ke Janwar Ke Gosht Ka Hukm
हम कुर्बानी करते हैं तो उस जानवर के गोश्त को तीन हिस्सों में बाट्ते हैं क्या ऐसा करना हमारे शरीयत में है? बहारे शरीयत के पन्द्रहवीं हिस्से में क़ुर्बानी के मसाईल लिखे हुए हैं! उसमे क़ुर्बानी के जानवर के गोश्त के तीन हिस्से करने को मुस्तहब लिखा है जैसे बकरा है तो उसके गोश्त के तीन हीस्से कर लिए जाएँ! एक हिस्सा क़ुर्बानी करने वाला अपने इस्तेमाल के लिए रख ले, एक हिस्सा अपने रिश्तेदारों में बटवाँ दे और एक हिस्सा गरीबों मिस्कीनों में बाँट दे तो ऐसा करना मुस्तहब है (बहारे शरीयत) अगर पूरा बकरा ख़ुद रख लिया या पूरा बकरा बाँट दिया या फिर पूरा बकरा एक साथ उठा कर किसी को दे दिया तो ये तमाम सूरतें शरीयत में सही हैं!
Moharram Ke Mahine Me Qurbani Ka Gosht Khana Kaisa Hai?
क्या क़ुर्बानी का गोश्त ईद-उल-अदहा गुज़रने के बाद भी खाया जा सकता है? कुछ लोग कहते हैं के मोहर्रम का चाँद नज़र आ जाए तो घर मे गोश्त नही पकाना खाना चाहिए और क़ुर्बानी का गोश्त भी एक मोहर्रम से पहले पहले ख़त्म कर लेना चाहिए! जब के अगर कोई क़ुर्बानी का गोश्त साल भर तक खाना चाहे तो खा सकता है ये सही है! मोहर्रम में भी क़ुर्बानी का गोश्त और उसके इलावाह जानवर ज़बह कर के उसका गोश्त भी खाया जा सकता है!
Faut Shuda Maa Baap Ke Naam Qurbani
अगर माँ बाप का इंतेक़ाल हो चुका हो और उन्होंने अपनी पूरी ज़िंदगी मे कभी भी क़ुर्बानी नहीं कि हो तो क्या उनके बेटे या बेटी उनके नाम से क़ुर्बानी कर सकते हैं? तो इस सवाल का जवाब है जी हाँ बिल्कुल कर सकते हैं! इसाले सवाब की नीयत से क़ुर्बानी हो सकती है और इसमें कोई हर्ज नहीं है! माँ बाप के तरफ से क़ुर्बानी करना बहुत ही अच्छी बात है, माँ बाप अपनी ज़िंदगी मे क़ुर्बानी करते थे या नहीं या 100, 100, बकरे ज़िन्दगी में ज़बह किया करते थे तब भी सवाब पहुँचाने के लिए क़ुर्बानी करने में कोइ हर्ज नहीं! और ज़िंदाह आदमी के इसाले सवाब के लिए भी क़ुर्बानी करना सही है!
Kaun Se Janwar Ki Qurbani Afzal Hai?
उस जानवर की क़ुर्बानी सब से ज़्यादा अफ़ज़ल है जिसे ख़ुद से पाला जाए! इंसान जो जानवर ख़ुद पालता है उस से मोहब्बत ज़्यादह होती है बल्के कभी कभी जानवर से औलाद की तरह प्यार हो जाता है! उसे ज़बह करना ख़ुद पर ज़्यादह मुश्किल होता है और दिल मे एक सदमे की कैफ़ियत होती है! तो जो जानवर ख़ुद से पाला जाए उसे क़ुर्बानी करने में ज़्यादह फ़ज़ीलत दिखाई दे रही है! अगर उस जानवर को बेच दिया जाए तो ये कैफ़ियत नही होगी! अब नज़रों से ओझल हो गया अब कटे या फिर कुछ भी हो उतना महसूस नहीं होगा! या फिर उसको बेच कर दूसरा जानवर लिया जाए तो उस से ज़्यादा उंसियत और प्यार नहीं होगा और उस को काटने से नफ़्स पर उतना बोझ भी नहीं होगा लेहाज़ा जो जानवर ख़ुद पाला जाए उसे ही ज़बह किया जाए!