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अक़ीक़ा का तरीका | Aqiqah kaise kare in Hindi

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अक़ीक़ा का तरीका | Aqiqah kaise kare in Hindi

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“अक़ीक़ा का तरीका”
Aqiqah kaise kare in Hindi

۞ बिस्मिल्लाह-हिर्रहमान-निर्रहीम ۞

अल्लाह के नाम से जो बड़ा मेहरबान बहुत रहम वाला है।

सब तअरीफें अल्लाह तआला के लिए हैं जो सब जहानो का पालने वाला है। हम उसी से मदद और माफी चाहते हैं।
अल्लाह की वेशुमार सलामती, रहमतें और बरकतें नाज़िल हों मुहम्मद सल्लल लाहु अलैहि व सल्लम पर और आपकी आल व औलाद और असहाब रजि. 

 

अकीका किसे कहते हैं?

अकीका उस जबीहा को कहते हैं जो नौमोलुद की तरफ से किया जाता है।
यह भी कहा गया है कि अक़ीका उन बालों को कहा जाता है जो मां के पेट में पैदा होने वाले बच्चे के सर में निकलते हैं।

चूंकि उन बालों को नौमोलूद के सर से जिबह के वक्त मुंड दिया जाता है। इसलिए किसी बच्चे की पैदाइश पर जो बकरी जिबह की जाती है, उसे अकीका कहा जाता है।

‘अक’ का एक मआनी फाड़ना और काटना भी होता है। इसलिए भी नौगोलूद की तरफ से जिबह की जाने वाली बकरी को अकीका कहा गया क्योंकि उस(जानवर) के जिस्म के टुकड़े कर दिये जाते हैं और उसके पेट को चीर-फाड़ दिया जाता है। (बलू गुल मराम जिल्द 2 सफा 873)

अकीके की अहमियत

इरशादे बारी तआला है “अल्लाह का शुक्र अदा करो। अगर तुम सिर्फ उसी की। इबादत करते हो।” (सूरह नहल-आयत-114)

“तुम मेरा ज़िक्र करो। मैं भी तुम्हें याद करूंगा और मेरी शुक्र गुज़ारी करो और ना शुक्री करने से बचो।” (बकरा-आयत-152)

इसलिए औलाद जैसी नेमत के मिलने पर अकीका करके अल्लाह का शुक्र अदा करना चाहिये।

अकीके का गोश्त खुद भी खाया जा सकता है। दोस्तों को भी दिया और खिलाया जा सकता है। गरीबो-मिस्कीनों और रिश्तेदारों को पका कर भी खिलाया जा सकता है।

अकीका हदीस की रोशनी में

(1) “बच्चे के साथ अकीका (लाजिम) है। लिहाजा तुम उसकी तरफ से कुर्बानी करो और उसकी तकलीफ को दूर करो।”
(रावी-सलमान बिन आमिर रज़ि-बुखारी-5472, अबु दाउद-2839, इब्ने माजा-3184, नसाई-4220, तिर्मिज़ी-1361, दारमी-2012)

(2) “जिसके यहां कोई बच्चा पैदा हो और वह उसकी तरफ से कुर्बानी करना चाहे तो ज़रूर कुर्बानी करे।”
(अब्दुल्लाह बिन अग्न रजि-नसाई-4218)

(3) “हर बच्चा अपने अकीके के एवज़ गिरवी होता है। पैदाइश के सातवे दिन उसका अकीका किया जाए।”
(रावी-सुमरा बिन जुन्दुब रजि- अबुदाउद-2838, नसाई-4226. इब्ने माज़ा-3165, तिर्मिजी-1368, दारमी-2014)

(4) “लड़के की तरफ से दो बराबर (एक जैसी) बकरियां और लड़की की तरफ से एक बकरी।”
(कुर्बानी की जाए। (रावीया-उम्मै कुर्ज कअबिया रज़ि-अबुदाउद-2834, नसाई-4221, इने माजा-3162, दारमी-2011)

(5) “आप (ﷺ) ने हसन रज़ि और हुसैन रज़ि का अकीका किया और 2-2 दुम्बे जिबह किये।”
(रावी-इने अब्बास रजि-नसाई-4225)

(6) “हमें अल्लाह के रसूल (ﷺ) ने हुक्म दिया कि लड़के की तरफ से दो बकरियां और लड़की की तरफ से एक बकरी अक़ीके में कुर्बानी की जाए।”
(आएशा रजि-इने माजा-2163, तिर्मिजी-1359)

(7) “आप (ﷺ) ने हसन रज़ि की तरफ से अक़ीका किया। फिर फरमाया ऐ फातिमा (रजि) इस का सर मुन्डवाओ और इस के बालो के वज़न के बराबर चांदी सदका करो।”
(अली रजि-तिर्मिजी-1365)

(8) “फातिमा रज़ि ने हसन रज़ि और हुसैन रज़ि के बाल तौल कर उन के वज़न के बराबर चांदी सदका की।”
(मोत्ता इमाम मालिक-1121 सफा-371)

(9) “अकीका किया जाए बच्चे की तरफ से लेकिन उस के सर में खून (अकीके के जानवर का जैसा कि जमाना ए जाहिलियत में रिवाज़ था) ना लगाया जाए।”
(यजीद बिन अब्द-इब्ने माजा-3166)

मालूम हुआ अकीका इस्लाम की सुन्नतों में से एक सुन्नत है।
आम अहले इल्म खुसुसन इने अब्बास रजि, इब्ने उमर रज़ि, आएशा रज़ि, फुक्हा ए ताबईन रह, और कई अइम्मा जिनमें इमाम मालिक रह. इमाम शाफई रह.. इमाम अहमद बिन हम्बल रह,

और अल्लामा शौकानी रह शामिल हैं, के नज़दीक अकीका सुन्नत है।

बअज़ उलेगा ने इसे वाजिब कहा है। जबकि अहनाफ के नजदीक अकीका सुन्नत नही बल्कि सिर्फ मुबाह और जाइज़ है।

शैख इन्ने जबरीन के नज़दीक अकीका सुन्नते मुअक्केदा है। शैख़ इन असीगीन रह ने भी अक्सर अहले इल्म के नज़दीक इसे सुन्नते मुअक्केदा ही कहा। अलबत्ता हसन बसरी रह, के नज़दीक अकीका करना फर्ज है। (फिक्ह उल हदीस-जिल्द 2 सफा 487-488)

अगर अकीका करने की हैसियत न हो?

अल्लाह तआला ने फरमाया “अपनी ताकत भर अल्लाह से डरते रहो।” (तगाबुन-आयत-16)

“अल्लाह किसी नफ्स को उसकी ताकत से ज्यादा तकलीफ (आज़माइश) नहीं देता।” (बकरा-285)

नबी सल्ल, ने फरमाया “जब मैं तुम्हें किसी काम का हुक्म दूं तो जितनी तुम में ताकत हो, उस पर अमल करो।” (मुस्लिम, नसाई)

शैख़ इब्ने असीमीन रह, ने कहा “अगर कोई शख्स अपनी औलाद की पैदाइश के वक्त गरीब हो तो उस पर अकीका करना ज़रूरी नहीं है क्योंकि वह आजिज है और आजिज या बेबस होने की वजह से इबादत साक़ित हो जाती है।” (फतावा इस्लामिया -जिल्द 2 सफा-427)

इमाम अहमद और इमाम मन्ज़र रह ने कहा कि “ऐसा शख्स अकीका करने के लिये कर्ज़ ले ले। उम्मीद है कि अल्लाह उसे सुन्नत ज़िन्दा करने की वजह से पूरा पूरा अज्र दे।” (फिकह उल हदीस-जिल्द 2 सफा-488)

नातमाम बच्चे की तरफ से अकीके का हुक्म

साकित हो (गिर) जाने वाले बच्चे की तरफ से अकीका नही हैं।

अगर यह भी पता चल जाये कि वह लड़का है या लड़की। बशर्ते कि रूह फूंके जाने से पहले साकित हो जाए क्योंकि अकीके का जानवर पैदाइश के सातवें रोज़ जिबह किया जाता है।

 

इसी तरह वक्त से पहले गिर जाने वाले नातमाम बच्चो का अक़ीक़ा नहीं है। (सऊदी इफ्ता कमेटी-फतावा इस्लामिया जिल्द 2 सफा 427)

मय्यत की तरफ से अकीका

कुछ उलेमा की राय में ऐसा किया जा सकता है। बशर्ते कि बच्चा सात दिनों से ज्यादा कितनी भी उम्र पा कर फौत हुआ हो। लेकिन शेख इब्ने असीगीन रह. का फत्वा है कि “मय्यत की तरफ से अकीका नहीं है बल्कि उसके लिए मगफिरत की दुआ की जा सकती है और सदका वगैरह किया जा सकता है।” (फतावा इस्लामिया जिल्द 2 सफा 425)

ज़िन्दा वालदैन की तरफ से अकीका

अल्लाह के रसूल सल्ल. के इस फरमान कि “हर बच्चा अपने अकीके के एवज़ रहन (गिरवी) होता है।” से मालुम होता है कि वालिदैन की तरफ से (अगर उनका अकीका ना किया गया हो) तो औलाद भी उनकी तरफ से अकीका कर सकती है क्योंकि रहन की चीज़) कोई भी छुड़ा सकता है। (फिक्ह उल हदीस-जिल्द 2 सफा-496)

क्या इन्सान खुद अपना अकीका कर सकता है?

अगर किसी के वालिदैन अक़ीके के मसाइल से लाइल्मी, जहालत, गुरबत या किसी और वजह से अकीका न कर सकें हों तो वह खुद भी अपना अकीका कर सकता है।

इमाम शाफ़ई रह, अता बिन अबि रवाह रह. और हसन बसरी रह. का कहना है कि “इंसान अपनी तरफ से भी अकीका कर सकता है इसलिए कि वह अकीके के एवज गिरवी है।” लेकिन हनाबेला(हम्बली) इसके खिलाफ हैं। उनकी दलील यह है कि “अकीका करना वालिदेन की जिम्मेदारी है। (फिक्ह उल हदीस-जिल्द 2 सफा-495)

अगर कोई सातवें दिन से पहले अकीका करे

तो ऐसा शख्स सुन्नते रसूल (ﷺ) की खिलाफ वर्जी करने वाला है। क्योंकि नबी (ﷺ) ने अकीके के लिये जो दिन मुकर्रर फरमाया है, वह पैदाइश का सातवां दिन है। लेकिन बच्चा रहन से आजाद हो जाएगा। (फिक्ह उल हदीस-जिल्द 2 सफा-494)

क्या सातवें रोज के बाद अकीका किया जा सकता है?

पैदाइश के सातवें रोज के बाद भी अकीका किया जा सकता है। फिर चाहे वह बालिग ही क्यो न हो गया हो। क्योंकि वह बच्चा अकीका न होने की वजह से अभी तक गिरवी है।

नबी ऐ करीम (ﷺ) का इरशाद है “अकीके का जानवर सातवें रोज जिबह किया जाए या चौदवें रोज या इक्कीसवें रोज।” (सही जामेअ अल सगीर हदीस न. 4011)

इसी तरह सउदी मजलिसे इफ्ता का फत्वा है “सातवें रोज के बाद भी अकीका किया जा सकता है लेकिन देर करना सुन्नत के खिलाफ है।” (फतावा इस्लामियां-जिल्द 2 सफा-426)

 

 

अकीके के जानवर में कुर्बानी के जानवर की शर्त?

इस बाबत भी उलेमा हजरात की मुखतलिफ राय हैं। शोकानी रह, कहते हैं कि अकीके के जानवर में चोह शर्ते नही लगाई जाएंगी जो कुर्बानी के जानवर की हैं और यही बात हक है। (नैलुल अवतार जिल्द 3 सफा-506)

अब्दुर्रहमान मुबारकपुरी रह. का कहना है “किसी भी सही हदीस से यह शर्ते लगाना साबित नहीं। बल्कि किसी जईफ हदीस से भी यह साबित नहीं।” (तोहफा अल अहूजी-जिल्द 5 सफा-399 ) (व हवाला-फिक्ह उल हदीस-जिल्द 2 सफा-493)

अलबत्ता इब्ने कदामा रह. की राय में “अकीके के जानवर में भी उन ऐबों से बचा जायेगा जिनसे कुर्बानी के जानवर में बचा जाता है।” (अल मुगनी जिल्द-13 सफा-999) ब हवाला-फिकह उल हदीस जिल्द-2 सफा-493)

अकीके का जानवर नर हो या मादा?

अकीके में नर या मादा दोनो ही जानवर जिबह किये जा सकते हैं। इसलिए कि आप सल्ल. का इर्शाद है “लड़के की तरफ से दो बकरियां और लड़की की तरफ से एक बकरी जिबह की जाए। नर हों या मादा तुम्हें कोई चीज नुकसान नही देगी।” (उम्मे कुर्ज कअबिया रजि. अबु दाउद-2835, तिर्मिजी-1360)

क्या अकीके में ऊँट और गाय की कुर्बानी सही है?

अहादीसे रसूल सल्ल. मे अकीके में कुर्बानी के लिए जिन जानवरों का जिक्र मिलता है, वोह बकरी और दुंबा है। जैसा कि उम्मे कुर्ज रजि. से अबु दाउद (2835) इब्ने अब्बास रज़ि से सुनन नसाई-4222 और अग्न बिन शोएब रजि. से अबू दाऊद में 2842 हदीस में है कि आप सल्ल. ने फरमाया “जिसके यहां कोई बच्चा पैदा हो और वह उसकी तरफ से कुर्बानी करना चाहे तो लड़के की तरफ से 2 और लड़की की तरफ से 1 बकरी कुर्बानी करे।”
“हसन रज़ि और हुसैन रजि, के अकीके में मेंढा जिबह हुआ।” (अबु दाउद 2841-इने अब्बास रजि.)

शोकानी रह. ने लिखा है कि “जम्हूर (उलैमा) गाय और बकरी को (अक़ीके के लिए) काफी करार देते हैं। यानि जाइज़ करार देते हैं।” (नैलुल अवतार जिल्द 3 सफा-537)

डाक्टर वहबा ज़हीली की राय में अकीका भी कुर्बानी की तरह अनआम यानि ऊंट, गाय, भेड़ और बकरी से किया जा सकता है। जिन उलेमा ने ऊंट और गाय की कुर्बानी को अक़ीके के लिए जाइज़ कहा है, उन की दलील अनस रज़ि, से मरवी यह हदीस है “बच्चे की तरफ से ऊंट, गाय, भेड़ और बकरी से अकीका किया जा सकता है। लेकिन यह रिवायत साबित नहीं।”

जैसा कि इमाम हैशमी रह. ने कहा कि इस की सनद में मसअदा बिन अल यसआ रावी झूठा है। चूंकि सही अहादीस में सिर्फ बकरी और दुंबा जिबह करने का ज़िक्र है, इसलिए इन्हीं की कुर्बानी करना बेहतर है।” (फिक्ह उल हदीस-जिल्द 2 सफा-491)

क्या लडके की तरफ से एक जानवर भी कुर्बान किया जा सकता है?

(1) इब्ने अब्बास रज़ि से रिवायत है कि “अल्लाह के रसूल सल्ल ने हसन रज़ि, और हुसैन रज़ि, की तरफ से अकीके में 1-1 दुम्बा जिव्ह किया।” (अबु दाउद-2841)

शैख़ अल बानी रह. ने कहा कि यह रिवायत सही है लेकिन नसाई की वह रिवायत ज्यादा सही है जिसमें 2-2 का जिक्र है। (नसाई-4225-इल्ने अब्बास रजि.)

(2) इब्ने उमर रज़ि, अपने घर वालों की तरफ से अकीके में (लड़का हो या लड़की) 1-1 बकरी जिबह करते थे। (मौत्ता मालिक-1122 सफा-371)

(3) उरवाह बिन जुबैर रज़ि. अपनी औलाद की तरफ से लड़का होता या लड़की 1-1 बकरी अकीके में जिबह करते थे। (मौत्ता मालिक हदीस 1125 सफा-371)

शोकानी रह ने कहा कि आप सल्ल. का अकीके में एक बकरी कुर्बान करना इस बात का सुबूत है कि दो जानवर जरूरी नहीं बल्कि मुस्तहब हैं। (फिक्ह उल हदीस-जिल्द 2 सफा-493)

चूंकि कौल को फैअल पर तरजीह होती है। इसलिए लड़के की तरफ से 2 और लड़की की तरफ से 1 जानवर ही जिबह करना बेहतर है।

बच्चे के गिरवी होने का मतलब?

बच्चे के गिरवी होने का मतलब इमाम अहमद रह. की राय में यह है कि बच्चे का अगर अकीका न किया जाए तो वह अपने मां-बाप की सिफारिश न कर सकेगा।

यह भी कहा गया है कि यह अकीके के वाजिब होने के मफ़हूम में है। जैसा कि कर्ज में अदायगी किये बगैर गिरवी चीज़ वापिस नही हो सकती और यह भी कहा गया है कि बच्चा अपने बालों और मैल-कुचैल के साथ गिरवी होता है यानि उस गिरवी को छुड़ाना चाहिये।” (ऊन अल मअबूद-बहवाला-अबुदाउद जिल्द 3 सफा 289)

अकीके के जानवर का गोश्त और खाल का मसरफ

इस बारे में अहादीसे रसूल सल्ल. से कोई रहनुगाई नही मिलती। अलबत्ता डॉक्टर वहबा ज़हीली का कहना है कि अकीके के (जानवर के) गोश्त और खाल का हुक्म कुर्बानियों की तरह ही है। यानि उनका गोश्त खाया जा सकता है, खिलाया जा सकता है और उस से सदका किया जा सकता है लेकिन उस की कोई चीज बेची नहीं जा सकती। (फिकह उल इस्लामी व अदल्ला जिल्द 3 सफा 639 व हवाला फिक्ह उल हदीस जिल्द 2 सफा 496)

अकीके के बदले जानवर की कीमत सदका कर देना कैसा है?

इब्ने कदामा रह, ने कहा “अक़ीके के जानवर की कीमत सदका करने से अक़ीके के जानवर को जिबह करना ज्यादा अफजल है।”

इमाम अहमद रह, ने कहा कि “जब किसी के पास इतना माल न हो कि वह अकीका कर सके तो कर्ज ले ले क्योंकि यह ऐसा ज़बीहा है जिसका नबी सल्ल. ने हुक्म दिया है।” (फिक्ह उल हदीस जिल्द 2 सफा 495)

अकीके के जानवर की कीमत किसी फंड में जमा कराना कैसा?

अकीके का बदल नहीं होगा। बुरैदाह रज़ि, का बयान है कि दौरे जाहिलियत में जब हम में से किसी के यहां बच्चा पैदा होता तो वह एक बकरी जिबह करता और उस का खुन बच्चे के सर पर चुपड़ देता था। मगर जब से अल्लाह ने हमें इस्लाम की दौलत से नवाज़ा है, हम एक बकरी जिबह करते हैं, बच्चे का सर मुँडाते हैं और उस के सर पर जाफरान मल देते हैं। (अबुदाऊद-2843)

अक़ीके का इरादा न हो तो पैदाइश के दिन नाम रखना कैसा?

अगर बच्चे के अक़ीके का इरादा न हो तो पैदाइश के दिन ही उसका नाम रखना जाइज़ है। इसलिए कि अबु मूसा रजि. के यहां जब बच्चा पैदा हुआ तो आप उसे लेकर नबी सल्ल. के पास गये। आप सल्ल. ने बच्चे का नाम इब्राहीम रखा और खजूर को दांतों से चबाकर उसे चटाया। (बुखारी-5447)

ऐसा ही आप सल्ल. ने अब्दुल्लाह इने जुबैर रजि. की पैदाइश पर भी किया था। (बुखारी-5489)

अल्लाह तआला से दुआ है कि वह हमें सुन्नत के मुताबिक ज़िन्दगी गुजारने और बिदआत और फिजूल रूसूमात से दूर रहने की तौफीक अता करे। अमीन।अहले इल्म हजरात से गुजारिश है कि इस पर्व में कहीं कमी या गल्ती पायें तो जरूर हमारी इस्लाह फरमाऐ।

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